गुजरात के मेहसाणा जिले में किसान अब पारंपरिक खेती छोड़कर जैविक खेती की ओर तेज़ी से रुख कर रहे हैं। राज्य सरकार भी इस बदलाव में अहम भूमिका निभा रही है। जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार प्रति हेक्टेयर 20,000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है। साथ ही, किसानों को पूरे साल जैविक खेती के आधुनिक और टिकाऊ तरीकों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह पहल न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार है, बल्कि स्वास्थ्यवर्धक और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों को भी बढ़ावा देती है।
रासायनिक खेती की दुष्प्रभाव और जैविक खेती की आवश्यकता:
पिछले कुछ दशकों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने खेती और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाला है। मिट्टी की गुणवत्ता कम होने के साथ-साथ कई स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ी हैं। इन समस्याओं का समाधान जैविक खेती में छिपा है। जैविक खेती के उत्पाद न केवल पौष्टिक होते हैं बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित होते हैं। बाजार में जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग किसानों को इस ओर आकर्षित कर रही है। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होती है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी बेहतर गुणवत्ता के उत्पाद उपलब्ध होते हैं।
जैविक खेती की तकनीकी पहलू:
जैविक खेती की सफलता उसके सही तकनीकी क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। फसल की बुवाई और सिंचाई के दौरान कुछ खास तरीकों का पालन करना अनिवार्य है।
हरी खाद का उपयोग:
: ढैंचा, मूंग, उड़द जैसी फसलों को जैविक खाद के रूप में मिट्टी में मिलाया जाता है। प्रति एकड़ 200 लीटर जीवाणु नासी पानी का छिड़काव भी मिट्टी की गुणवत्ता सुधारता है।
ठोस खाद का आवश्यकता:
बुवाई से पहले प्रति एकड़ 400 किलोग्राम जैविक खाद का उपयोग फसल के पोषण को बढ़ाता है।
मिट्टी की देखभाल:
मिट्टी को बारीक और हल्का बनाकर उसमें अच्छी नालियों की व्यवस्था करना अनिवार्य है, ताकि पानी और पोषक तत्वों का बेहतर प्रवाह हो सके।
बीज संवर्धन:
अच्छी उपज का आधार
जैविक खेती में बीजों का संवर्धन एक अहम प्रक्रिया है। इसके लिए बीजों को “बिजामृत” में भिगोकर रखा जाता है, जिससे उनके अंकुरण की क्षमता बढ़ती है।
साधारण बीजों को 6-7 घंटे और विशेष बीजों को 12-13 घंटे तक बिजामृत में भिगोना चाहिए।
करेला और टिंडोरा जैसे बीजों को बिजामृत से उपचारित करने के बाद छाया में सुखाकर बोया जाता है।
यह प्रक्रिया न केवल बीजों के अंकुरण को सुनिश्चित करती है, बल्कि फसल की उपज भी बेहतर होती है।
जैविक खेती का लाभ:
पर्यावरण संरक्षण: रसायनों का उपयोग न होने से मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण कम होता है।
स्वास्थ्य सुधार: जैविक उत्पाद पोषण से भरपूर होते हैं, जिससे उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य बेहतर होता है।
बाजार में बढ़ती मांग: जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्य मिलता है।
लागत में कमी: जैविक खेती में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता है, जिससे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की लागत बचती है।
निष्कर्ष:
जैविक खेती न केवल किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक है, बल्कि यह पर्यावरण और समाज के लिए भी फायदेमंद है। गुजरात के किसान इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और राज्य सरकार भी उनके इस प्रयास में साथ खड़ी है। जैविक खेती को अपनाकर किसान अपनी फसल की गुणवत्ता और बाजार में प्रतिस्पर्धा को बेहतर बना सकते हैं। यह कदम न केवल खेती के स्वरूप को बदल रहा है, बल्कि समाज को स्वास्थ्यवर्धक और सुरक्षित जीवन की ओर भी ले जा रहा है।
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